Wednesday, February 27, 2008

Madhushala

one of my favourite poems (especially the last para) - Harivansh Rai Bachan
And my philosophy in life - let bygones be bygones.

जीवन मैं एक सितारा था
माना वेह बेहद प्यारा था
वेह डूब गया टू डूब गया
अम्बर के आनन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फिर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अम्बर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई

जीवन मैं था वह एक कुसुम
थे उसपर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया टू सूख गया
मधुवन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियाँ
मुरझाई कितनी बल्ल्रियाँ
जो मुरझाई फिर वह कहाँ खिली
पर बोलों सूखे फूलों पर
कब मधुबन शोर मचाता है
जो बीत गई सो बात गई

जीवन मैं मधु का प्याला था
तुमने तन मन से डाला था
वह टूट गया तोह टूट गया
मधिरालय के आँगन को देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिटटी मैं मिल जाते है
जो गिरते है कब उठते है
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मधिराल्याँ पछताता है
जो बीत गई सो बात गई

मृदु मिटटी के है बने हुए
मधु घुट फूटा ही करते है
लघु जीवन ले कर आए है
प्याले टूटा ही करते है
फ़िर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घट है मधु प्याले है
जो मादकता के मारे है
वेह मधु लूटा ही करते है
वेह कचा पीने वाला है
जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है
जो बीत गई सो बात गई

2 comments:

Suruchi said...

really liked this poem...says so much...jo beet gaya so beet gaya...toote taro par kab ambar pachtaya hai!

Suruchi said...

hey i am in love with this poem...will pick n post it on my blog too!!! hope u dnt mind it!!