Friday, April 18, 2008

Zindagi ke liye waqt

another poem that I like... source unknown (to me)

हर खुशी है लोगों के दामन में,
पर एक हँसी के लिए वकत नही.
दिन रात दौड़ती दुनिया में,
ज़िंदगी के लिए ही वकत नही.

माँ की लोरी का एहसास तो है,
पर माँ को माँ कहने का वकत नही.
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके,
अब उन्हें दफनाने का भी वक्त नही.

सारे नाम मोबाइल में हैं,
पर दोस्ती के लिए वकत नही.
गैरों की क्या बात करें,
जब अपनों के लिए ही वक्त नही.

आंखों मे है नींद बड़ी,
पर सोने का भी वकत नही.
दिल है ग़मों से भरा हुआ,
पर रोने का भी वक्त नही.

पैसों की दौड़ मे ऐसे दौडे,
की थकने का भी वक्त नही.
पराये एहसासों की क्या कद्र करें,
जब अपने सप्नों के लिए ही वकत नही.

तू ही बता ऐ ज़िंदगी,
इस ज़िंदगी का क्या होगा,
की हर पल मरने वालों को,
जीने के लिए भी वकत नही.......

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